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Poetry - Kagaz Si Ho Gyi Hai Zindagi

Kagaz Si Ho Gyi Hai Zindagi - Poetry 

Poetry- kagaz si ho gyi hai zindagi

कागज सी हो गयी है ज़िन्दगी ,

कोई भी कुछ भी लिख कर चला जाता है ,

बिना सोचे समझे साफ़ दामन पर कालिख पोत जाता है ,

मिटाने की कोशिश करना ही बेकार है ,

पहले ही पढ़ चुके हज़ार है। 


किस किस को सफाई दू ,

अपने दर्द की दुहाई दू ,

देख कर भी अनदेखा करते है ,

भला कैसे में सुनाई दू। 


इस कागज़ पर छपे अक्षर मेरी तक़दीर बन चुके है ,

जो पसंद नहीं है मुझको वो तस्वीर बन चुके है। 


गलती सिर्फ इतनी है की हमने विश्वास किया ,

अपना सब कुछ मान कर दिल के पास किया ,

लेकिन तुमने मेरा सिर्फ तिरस्कार किया। 


कागज़ सी हो गयी है ज़िन्दगी। 


                            - RaagVairagi

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