यादों की होली -THE BEST HOLI FESTIVAL CELEBRATION AMONG FRIENDS
होली रंगों का त्यौहार है । कॉलेज के समय की होली कुछ ख़ास थी। होली से तीन चार दिन पहले से ही प्लानिंग शुरू हो जाती थी ,की क्या क्या करना है ,किस किस को भूत बनाना है | होली पर घर भी जाना होता था तो हम लोग कॉलेज में एक दो दिन पहले ही होली खेल लिया करते थे फिर घर जाते थे। जिस दिन होली खेलनी रहती थी , उस दिन बैग में किताबों की जगह गुलाल होता था ।
टारगेट ये रहता था की कोई साफ़ सुथरा घर न पहुँच पाए। कॉलेज पहुँच कर ग्रीन सिगनल मिलते ही होली सुरु हो जाती थी । पहले अपने क्लास वालों को पकड़ पकड़ के रंग लगाते थे । फिर पूरी क्लास भूत बन कर बाहर निकलती , और दूसरी क्लास वालों को ढूँढ़ते । सूखा रंग ,गीला रंग जो भी मिलता लगा डालते , कुछ न मिलने पर पानी से भी काम चल जाता था।
रंग से भूत बने हुए बच्चे कॉलेज में टहलना शुरू करते , बीच में सीनियर्स से भी भेंट होना लाज़मी है ।फिर वह जूनियर्स सीनियर्स का मेल मिलाप और होली दोनों चालू हो जाता । पता ही नहीं चलता सीनियर कौन है और जूनियर कौन है । जब आस पास सब रंगीन दिखने लगता फिर कपड़ों का नंबर आता है , पहले शर्ट की जेब फटती है फिर धीरे धीरे पूरी शर्ट कहा गयी पहनने वाले को भी पता नहीं चलता।
दिन तो बाकी था होली खेल के अभी तक मन नहीं भरा था। नज़र दौड़ाने क बाद पता चलता की क्लास के कुछ बच्चे गायब है ,वो होली खेलने नहीं आये। अब ये हमारा कर्त्तव्य है की उन्हें भी रंगा जाए। फिर क्या था कॉलेज से रंग विरंगे भूत सड़को पर आ जाते बचे हुए लोगो की तलाश में। सड़क पर चलने वाले लोग तो हमारी हालत देख कर ही डर जाते। एक एक कर के सभी गुमशुदा छात्रों के घर क सामने जा कर पुकार लगाई जाती , मजबूरन बाहर आना ही पड़ता क्यूंकि भीड़ बहुत ज्यादा होती थी। जैसे ही दरबाजे क बाहर कदम रखा , साफ़ सुथरा लड़का एक दम से सतरंगी हो जाता साथ में निर्बस्त्र भी । इस तरह भूतों की टोली आगे बढ़ती और उसमे लोग बढ़ते जाते ।
अपनी क्लास के गुमशुदा छात्र ढूंढ़ने के बाद , गुमशुदा सीनियर्स की तलाश शुरू होती । सीनियर्स से मिलने पर एक फायदा और होता था ,वहा परम सुख की प्राप्ति भी हो जाती थी ,परम सुख से मेरा मतलब है "भांग"। बिना भांग क होली थोड़ी अधूरी लगती है। हमारा तो भांग से अलग प्रेम रहा है किसी और दिन इस बारे में बात करेंगे। सीनियर्स को ढूंढ़ने के बाद उन्हें भी टोली में शामिल कर के टोली आगे बढ़ती । एक गली से दूसरी गली ,ऐसा लगता मानो कोई आंदोलन चल रहा है ।
इस आंदोलन का एक ही मकसद था कोई साफ़ सुथरा घर न पहुँच जाए। जिस साल कॉलेज से निकलना होता है यानी फाइनल ईयर में , उस साल की होली सबसे यादगार हो जाती है , होली क रंगों के साथ ,यादों के रंग भी उसमे मिल जाते है । साथियों से भिछड्ने का गम भी होता है और नए भविस्य की और बढ़ने की ख़ुशी। वो आखिरी होली मानो कह रही हो -
"खेल लो होली जी भर के ,
ये वक़्त कभी न आएगा ,
रंग तो हर जगह मिल जाएंगे ,
ये आनंद नहीं मिल पाएगा ।"
उस होली में दोस्तों से गले मिलते हुए ख़ुशी के आंसू भी होते है । दिन भर होली खेलने के बाद थकान से चूर हो कर , चाय की दूकान पर विश्राम होता है । "मनोज भैया " और "चन्दन की चाय " पीने के बाद ही वो थकान दूर होती है । रात साफ़ सफाई करने और पैकिंग करने में चली जाती सुबह सब अपने अपने घर निकल जाते ।
"ये थी मेरी यादों की होली।"
2 Comments
Is joli doston ke sang....happy holi 2020..
ReplyDeleteNice 😍
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